Sunday, February 22, 2009

Lonely in Crowd..


पल पल बड़ते कदम, कुछ तेज़ तेज़ कुछ मधम मधम
वो चीख वो अंदाज़, क्या मौत इसी को कहते हैं ??

आसमानों में टिमटिमाते दिये जैसे तारे,
जो इस तूफान में कुछ धुंधले हो रहे हैं
ये बरफ सी ठंडी आह, मासूम बियाबान रात,
क्या मौत इसी को कहते हैं ??
याद है ज़िन्दगी भी है और तन्हाईं भी..
सिसकती हिचकियां भी हैं और सहमती रात भी
कभी आगोश में लेती हुयी माँ की पुकार को
और कभी धुंधली होती हुयी बच्चे की पुचकार को
क्या मौत इसी को कहते हैं ??
वक्त में बेपनाह लडाई में, जब शाम का आंचल खिसक कर गिर गया
उस बाप की लाचारी भरी मुस्कान को
जो सोचता था शायद रोके न सही, हँसके मना लूँगा भगवान को
समझ में तुझे आया "ज़िन्दगी" तू हवा है और तुझे बहना है
ेरी पशो पैनी पे भी ये आंसू रुकते नही
माँ का आँचल भरता नही
बाप की उदासी कम होती नही
बच्चे का दिल अब चिडिया जैसा चहकता नही
क्या मौत इसी को कहते हैं ??
जो अब आके भी मुझे नही आती..

Written by A Loner.. another Zindagi (not me)..

7 comments:

  1. Who has written this??
    this reminded me another shayari!!!!!!
    Zindagi tujhe jeene mei kya kami si reh gayi
    aankh ke cor mei kuchh nami si reh gayi

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  2. Seems you have written this and trying to hide the fact. m i right?

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  3. Ma’am jisane bhi ye kaha hai dil ka dard uski ankho se baha hai.visible in the pic too. As you said its not you, then who is this fellow?

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  4. r u sure its not u Ms.Season?????

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  5. why do u want me to cry?

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  6. very nice expressions.. please visit my poetry blog...
    paraavaani.blogspot.com

    add ''followers'' gadget to your blg..

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  7. I can’t read Hindi but as you explain your thoughts below the your poem I am fully agree woth your share thoughts,it will be very nice if you will translate to your poem in English

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